“An appeaser,” said Winston Churchill, “is one who feeds a crocodile hoping it will eat him last.”
भारत में "Apeasement Politics" को मनौती कार्यक्रम या यूँ कहिये तुष्टिकरण ऑपेरा दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है उससे तो यही प्रतीत होता है क़ि एक दिन देश में गृहयुद्ध की स्थिति ना आ जाये,
"अह्म ब्रह्मास्मि" सिद्धान्त भी कहीं ना कहीं इस राजनीती को हवा देने का कार्य करता है, जो मैं सुनना चाहता हूं, जो मैं समझना चाहता हूँ वही सत्य है, अल्पसंख्यक समुदाय की तरक्की के नाम पर एक बड़े समुदाय को ख़ुश करने का कोई मौका राजनीतिक गलियारे से नही छूट पाता, घड़ियाली आँसू तो ऐसे निकलते है जो डेली सोप ऑपेरा में बहने वाले ग्लिसरीन युक्त आँसू को भी पीछे छोड़ देते है....
बाटला काण्ड में श्री श्री वाहयात सिंह जी का रोना हो या पिछले यूपी विधानसभा, लोकसभा चुनावों में संविधान से अलग जाकर आरक्षण देने पर सलमान K. भाई की वकालत करना......
ताज़ा ख़बर यह है कि बंगाल में अभी तक काला जादू बरक़रार है, 27 साल से ज़्यादा एक ही व्यक्ति और उनके दल का शासन रहा और विगत चुनाव में फ़िर सरकार रिपीट हो गयी तभी पूजा पर रोक और क़त्ल की रात पर छुट्टी घोषित हुई,
एक प्रमुख दल को अति विशिष्ट अल्पसंख्यक समुदाय का लंबरदार और दूसरे प्रमुख दल को उसी समुदाय के विरोधी के रूप में संबोधित किया जाता है, पर बेचारा बहुसंख्यक समुदाय और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय का कोई लंबरदार ही नहीं है, तो ये लोग जाये तो जाये कहाँ, बेचारे......
Wait wait wait....
उन्हें तो किसी apeasement की ज़रूरत ही नही वो तो ख़ुद अपनी क़ाबिलियत के दम पर %wise भी आगे बढ़ते जा रहे है, चाहे पारसी हो चाहे सिख या चाहे हिन्दू
इसीलिए Apeasemnt की बैसाखियां त्याग, वोट बैंक वाले सेक्युलर्स को धूल चटा कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है....
भारत में "Apeasement Politics" को मनौती कार्यक्रम या यूँ कहिये तुष्टिकरण ऑपेरा दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है उससे तो यही प्रतीत होता है क़ि एक दिन देश में गृहयुद्ध की स्थिति ना आ जाये,
"अह्म ब्रह्मास्मि" सिद्धान्त भी कहीं ना कहीं इस राजनीती को हवा देने का कार्य करता है, जो मैं सुनना चाहता हूं, जो मैं समझना चाहता हूँ वही सत्य है, अल्पसंख्यक समुदाय की तरक्की के नाम पर एक बड़े समुदाय को ख़ुश करने का कोई मौका राजनीतिक गलियारे से नही छूट पाता, घड़ियाली आँसू तो ऐसे निकलते है जो डेली सोप ऑपेरा में बहने वाले ग्लिसरीन युक्त आँसू को भी पीछे छोड़ देते है....
बाटला काण्ड में श्री श्री वाहयात सिंह जी का रोना हो या पिछले यूपी विधानसभा, लोकसभा चुनावों में संविधान से अलग जाकर आरक्षण देने पर सलमान K. भाई की वकालत करना......
- हद तो तब हो गयी जब मौनी बाबा भी बोल पड़े की पहला हक़ अल्पसंख्यको में सिर्फ़ एक क़ौम का है, शायद अतिथि देवों भवः के आधार पर बोला होगा.... क्योंकि हिन्द देश के निवासी सभी जन एक है तो अलग से कुछ भी क्यों??
ताज़ा ख़बर यह है कि बंगाल में अभी तक काला जादू बरक़रार है, 27 साल से ज़्यादा एक ही व्यक्ति और उनके दल का शासन रहा और विगत चुनाव में फ़िर सरकार रिपीट हो गयी तभी पूजा पर रोक और क़त्ल की रात पर छुट्टी घोषित हुई,
एक प्रमुख दल को अति विशिष्ट अल्पसंख्यक समुदाय का लंबरदार और दूसरे प्रमुख दल को उसी समुदाय के विरोधी के रूप में संबोधित किया जाता है, पर बेचारा बहुसंख्यक समुदाय और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय का कोई लंबरदार ही नहीं है, तो ये लोग जाये तो जाये कहाँ, बेचारे......
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उन्हें तो किसी apeasement की ज़रूरत ही नही वो तो ख़ुद अपनी क़ाबिलियत के दम पर %wise भी आगे बढ़ते जा रहे है, चाहे पारसी हो चाहे सिख या चाहे हिन्दू
इसीलिए Apeasemnt की बैसाखियां त्याग, वोट बैंक वाले सेक्युलर्स को धूल चटा कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है....