क्या बच पायेगा अमेठी का किला, लोकसभा चुनाव 2019 में ये देखना दिलचस्प होगा.....
जब कवि कुमार विश्वास ने 2014 में राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अमेठी में चुनावी बिगुल फूंका था तब ये चर्चा होने लगी थी कि क्या अमेठी को फ़तह किया जा सकता है, कुमार ने लोगो को ये विश्वास दिलाना शुरू किया कि ये कांग्रेसी किला ढहाया जा सकता है, क़रीब 6 महीने की मेहनत से राहुल विरोधी प्लेटफॉर्म तैयार किया, फिर चुनावी समय मे एंट्री हुई स्मृति ज़ुबिन ईरानी की, और बीजेपी की लहर में कुमार की तैयार की हुई फ़सल काट लेे गयी, हालांकि जीत राहुल गांधी की ही हुई थी लेकिन राहुल की जीत से ज़्यादा स्मृति की हार की चर्चा थी, क्योंकि 2009 में 3.5 लाख के अंतर से जीतने वाले राहुल की जीत का अंतर, 2014 में 1 लाख 7 हज़ार का था, लेकिन बीजेपी को यक़ीन हो चला था कि ये अभेद्य किला जीता जा सकता है,
फ़िर क्या स्मृति ने पिछले पांच सालों में 21 बार अमेठी के दौरे किये और लगभग 26 दिन बिताए, वहीं राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र में 17 बार गए लेकिन 35 दिन बिताए, और अगर बात करे अमेठी के जिक्र की तो ट्विटर पर 39 बार अमेठी का जिक्र किया, अब इसे राहुल गांधी और कांग्रेस की आदत कहे या प्रचार न कर पाने की विफ़लता; कि राहुल ने महज़ एक या दो बार ट्विटर पर अमेठी का ज़िक्र किया,
अग़र बात 2017 के चुनावी नतीजो की करे तो बीजेपी, कांग्रेस पर हावी नज़र आती है, हालांकि 2012 विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस कोई बहुत अच्छा नही कर पाई थी लेकिन इस बार अमेठी में स्मृति ईरानी के हौसलें बुलंद है क्योंकि 2017 में अमेठी जिले की पांच विधानसभाओ में से 3 विधानसभा बीजेपी ने जीती, राहुल गांधी और कांग्रेस के ख़िलाफ़ कभी भी कोई भी दल अमेठी में इतना मुखर कभी नही हुआ, दो बार तो बसपा ही दूसरे नंम्बर की पार्टी रही लेकिन फ़िर भी वो अंदाज नही था जिसे लेकर स्मृति चुनाव लड़ रहीं है, जहां एक ओर अमेठी में बीजेपी का स्लोगन है "इस बार अमेठी हमार" तो कांग्रेस पार्टी का स्लोगन है "स्मृति की होगी तीसरी हार और जीत का अंतर 5 लाख पार"
लेकिन अगर आंकड़े देखे तो बाज़ी बराबरी की लगती है अब देखते है मोदी और योगी की जोड़ी क्या स्मृति को जीत दिला पाती है या सक्रिय राजनीति में क़दम रख चुकी प्रियंका इस चुनावी समर में परिवार की इज्ज़त बचा पाती है।
इस बार राहुल को महागठबंधन का भी समर्थन है, वैसे समाजवादी पार्टी का इस सीट पर गांधी परिवार को पहले भी समर्थन रहा है लेकिन बसपा का जुड़ना कहीं न कहीं कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचा सकता है, लेकिन बसपा सिंबल नही होने से बीजेपी भी बसपा वोटबैंक में सेंध लगाने में कोई कोर कसर नही छोड़ेगी, और जिस तरह अखिलेश और मायावती हालिया दिनों में कांग्रेस के ख़िलाफ़ मुखर हुए है गर वोट ट्रान्सफर नही हुआ तो इस बार अमेठी का अभेद्य किला भेदा जा सकता है।।
जब कवि कुमार विश्वास ने 2014 में राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अमेठी में चुनावी बिगुल फूंका था तब ये चर्चा होने लगी थी कि क्या अमेठी को फ़तह किया जा सकता है, कुमार ने लोगो को ये विश्वास दिलाना शुरू किया कि ये कांग्रेसी किला ढहाया जा सकता है, क़रीब 6 महीने की मेहनत से राहुल विरोधी प्लेटफॉर्म तैयार किया, फिर चुनावी समय मे एंट्री हुई स्मृति ज़ुबिन ईरानी की, और बीजेपी की लहर में कुमार की तैयार की हुई फ़सल काट लेे गयी, हालांकि जीत राहुल गांधी की ही हुई थी लेकिन राहुल की जीत से ज़्यादा स्मृति की हार की चर्चा थी, क्योंकि 2009 में 3.5 लाख के अंतर से जीतने वाले राहुल की जीत का अंतर, 2014 में 1 लाख 7 हज़ार का था, लेकिन बीजेपी को यक़ीन हो चला था कि ये अभेद्य किला जीता जा सकता है,
फ़िर क्या स्मृति ने पिछले पांच सालों में 21 बार अमेठी के दौरे किये और लगभग 26 दिन बिताए, वहीं राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र में 17 बार गए लेकिन 35 दिन बिताए, और अगर बात करे अमेठी के जिक्र की तो ट्विटर पर 39 बार अमेठी का जिक्र किया, अब इसे राहुल गांधी और कांग्रेस की आदत कहे या प्रचार न कर पाने की विफ़लता; कि राहुल ने महज़ एक या दो बार ट्विटर पर अमेठी का ज़िक्र किया,
अग़र बात 2017 के चुनावी नतीजो की करे तो बीजेपी, कांग्रेस पर हावी नज़र आती है, हालांकि 2012 विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस कोई बहुत अच्छा नही कर पाई थी लेकिन इस बार अमेठी में स्मृति ईरानी के हौसलें बुलंद है क्योंकि 2017 में अमेठी जिले की पांच विधानसभाओ में से 3 विधानसभा बीजेपी ने जीती, राहुल गांधी और कांग्रेस के ख़िलाफ़ कभी भी कोई भी दल अमेठी में इतना मुखर कभी नही हुआ, दो बार तो बसपा ही दूसरे नंम्बर की पार्टी रही लेकिन फ़िर भी वो अंदाज नही था जिसे लेकर स्मृति चुनाव लड़ रहीं है, जहां एक ओर अमेठी में बीजेपी का स्लोगन है "इस बार अमेठी हमार" तो कांग्रेस पार्टी का स्लोगन है "स्मृति की होगी तीसरी हार और जीत का अंतर 5 लाख पार"
लेकिन अगर आंकड़े देखे तो बाज़ी बराबरी की लगती है अब देखते है मोदी और योगी की जोड़ी क्या स्मृति को जीत दिला पाती है या सक्रिय राजनीति में क़दम रख चुकी प्रियंका इस चुनावी समर में परिवार की इज्ज़त बचा पाती है।
इस बार राहुल को महागठबंधन का भी समर्थन है, वैसे समाजवादी पार्टी का इस सीट पर गांधी परिवार को पहले भी समर्थन रहा है लेकिन बसपा का जुड़ना कहीं न कहीं कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचा सकता है, लेकिन बसपा सिंबल नही होने से बीजेपी भी बसपा वोटबैंक में सेंध लगाने में कोई कोर कसर नही छोड़ेगी, और जिस तरह अखिलेश और मायावती हालिया दिनों में कांग्रेस के ख़िलाफ़ मुखर हुए है गर वोट ट्रान्सफर नही हुआ तो इस बार अमेठी का अभेद्य किला भेदा जा सकता है।।
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